वर-वधू के मध्य परस्पर कई गुण ऐसे भी होते हैं, जो मेल नहीं खाते हैं, जिनका लौकिक और भौतिक रूप से समाधान करना अथवा हल ढूंढ निकालना सहज नहीं होता। यह तो ज्ञान दृष्टि युक्त ज्ञाता ही बता सकता है। यह पाणि ग्रहण संस्कार वर-वधू द्वारा ग्रह अनुकूलता, दैवीय आशीर्वाद से एक दूसरे के प्रति आजीवन सौहार्दपूर्ण बने रहने की पात्रता एवं सर्वगुण सम्पन्नता प्राप्ति का संस्कार है।
जीवन में पति एवं पत्नी का आत्मिक व मानसिक रूप से सामंजस्य बना रहना आवश्यक है। तभी वैवाहिक जीवन सुदृढ़ एवं सफल हो सकता है। इसके फलस्वरूप जीवन में आनन्द, हर्ष-उल्लास, प्रेम सौन्दर्य, भौतिक व गृहस्थ सुखों की प्राप्ति, संतान सुख, यश-सम्मान, वैभव, आमोद-प्रमोद, साथ ही धर्म के अनुसार आचरण, साधु सेवा, दान पुण्यादि सुकृत्तियों से जीवन सुखमय व्यतीत होता है।
विवाह संस्कार जीवन निर्माण की तथा वंश वृद्धि की प्रक्रिया है और भावी जीवन की नींव होती है। गृहस्थ जीवन की सुखद स्थितियों के निर्माण के लिए इस संस्कार को पूर्णता से आत्मसात करना आवश्यक है जिससे पति-पत्नी आजीवन मित्रवत, एक दूसरे के सहयोगी बने रहें, सुख-दुख में साथ चलते हुए जीवन आनन्दमय व्यतीत करे। यदि आपके परिवार में उक्त स्थितियाँ नहीं हो और परिवार में नजर दोष, काला जादू और मैली क्रियाओं के फलस्वरूप जीवन में बोझिलता, तनाव, अकारण शक, संदेह, अशांतता, प्रेम सामंजस्य के अभाव की अर्नगल स्थितियाँ बनी हुई हैं तो उन्हें शीघ्रतिशीघ्र गौरा वस्तक और शिव वस्तक अवश्य ही धारण करना चाहिए।
जो ‘शिव पार्वती पाणिग्रहण’ में इंगित किए गए दिव्य ऊर्ध्वरित मंत्रों से सिद्ध हैं। इन दोनों वस्तकों को लॉकेट रूप में धारण करें। किसी भी प्रदोष दिवस के दिन पति को चाहिए कि वह अपने हाथ से ‘गौरा वस्तक’ पत्नी के गले में पहना दें, तथा पत्नी ‘शिव वस्तक’ को अपने पति के गले में पहना दे। इस लॉकेट को दोनों को कम से कम तीन माह तक अवश्य धारण करना चाहिए जिससे सांसारिक जीवन में एक दूसरे के प्रति आत्मीय और प्रेमभाव और सौभाग्य वृद्धि के साथ-साथ रिश्तों में मधुरता का संचार निर्मित होता है। पति-पत्नी दोनों को जीवन में आनन्द और रस की प्राप्ति होती है जिससे जीवन सुगंधमय और चेतना युक्त बनता है। जीवन में गणपति, कार्तिकेय, रिद्धि-सिद्धि, शुभ-लाभ, भगवान सदाशिव महादेव और गौरी स्वरूप में अखण्ड सौभाग्यता की प्राप्ति सम्भव हो पाती है।
यदि आपके परिवारिक जीवन में बोझिलता, तनाव, अकारण शक, संदेह, प्रेम सामंजस्य के अभाव की अर्नगल स्थितियाँ बनी हुई हैं तो विवाहपरांत कभी भी वर-वधू स्वयं उपस्थित होकर अथवा अपना संयुक्त फोटो भेजकर पाणिग्रहण संस्कार दीक्षा, गृहस्थ सुख वृद्धि दीक्षा, अखण्ड सुहाग सौभाग्य वृद्धि दीक्षा, मेनका सौन्दर्य दीक्षा और अनंग कामदेव रति दीक्षा, इन पांच श्रेष्ठ जीवन की स्थितियों को पति-पत्नी में चेतना के साथ स्थापित किया जाता है जिससे गृहस्थ जीवन पंचभूत स्वरूप में श्रेयष्कर रूप में निर्मित होने की ओर अग्रसर होता है। पति-पत्नी का फोटो नाम और विवाह तिथि सहित भेजने पर दीक्षा प्रदान की जा सकेगी।
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